BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।

अथवा
मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
अथवा
पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं? 

उत्तर -

पूर्व मीमांसा में नैतिक पक्ष (Ethical side) पर विशेष बल दिया गया है। कर्म के महत्व को ऊँचा उठाते हुए कर्म के सिद्धान्त को एक यथार्थता का स्वरूप दिया है। धर्म की विषय-वस्तु वेदों से ली जाती है। वेदों में वह शक्ति है, जो ईश्वर के लिए भी एक प्रकाश उत्पन्न करती है।

कुमारिल भट्ट के अनुसार, "वह शास्त्र जिसे वेद कहा जाता हैं, वह ब्रह्म है। एक सर्वोपरि आत्मा का स्थापित किया हुआ है।"

अपनी पुस्तक के प्रारम्भ में कुमारिल भट्ट ने शिव की प्रार्थना निम्न शब्दों में की है- "मै उस ईश्वर को प्रणाम करता हूँ जिसका शरीर विशुद्ध ज्ञान से बना है, तीन वेद जिसके दिव्य चक्षु हैं, जो परमानन्द की प्राप्ति का कारण हैं और जो कुछ अर्द्धचन्द्र को धारणा करता है। वेद ईश्वर के मन का दिव्य ज्ञान है।"

मीमांसा शब्द का अर्थ होता है 'किसी समस्या का तर्क के द्वारा निर्णय' इसमें चिन्तनक्रिया प्रमुख होती है। मीमांसा दर्शन का प्रारम्भिक काल स्वयं वेद तक पहुँच जाता है। वैदिक अवस्था में मीमांसा का प्रयोग कर्मकाड तथा अन्य सिद्धान्त सम्बन्धी नियमों के सम्बन्ध में वाद विवाद के लिये किया गया। इसे सन्देह दूर किया जाता है तथा तार्किक बुद्धि के लिए नया स्थान बनाया जाता था। यज्ञों के सम्बन्ध में वैदिक मंत्रों की व्याख्या तथा उनका यथार्थ रूप में निर्धारण मीमांसा का कार्य था। धार्मिक, दार्शनिक तथा नैतिक समस्याओं को सुलझाने में भी मीमांसा दर्शन का योगदान है। मीमांसा दर्शन वैदिक कर्मकांड की पुष्टि और ज्ञान के सन्दर्भ में सन्देह को दो प्रकार से दूर करता है

१. वैदिक नियमों का सही अर्थ समझने के लिए उन पर शास्त्रीय वाद-विवाद करना और व्यवस्था की नई विधि का निर्माण करना।

२. वैदिक कर्मकांड के मूल सिद्धान्तों का तर्कपूर्वक प्रतिपादन करना। ३. कर्मों का फल निश्चित होता है तथा यह ब्रह्म द्वारा सुरक्षित रखे जाते हैं।

४. कर्मकांड का आधार वेद हैं तथा वेदों की रचना ईश्वर ने की है, अतः उन पर सन्देह नहीं करना चाहिये।

५. यह संसार सत्य है। हमारा जीवन आशापूर्ण है तथा हमें अपने आदर्शों के लिए जीवन जीना चाहिये।

६. आत्म ज्ञान द्वारा ही मुक्ति सम्भव है।

मीमांसा दर्शन का मूल ग्रन्थ "जैमिनी सूत्र" है। अतः जैमिनी को मीमांसा दर्शन का जन्मदाता माना जाता है। जैमिनी सूत्र में वेदों की दर्शन की व्यवस्था को काल्पनिक स्थान दिया गया है। जैमिनी सूत्र में बारह अध्याय हैं। इसमें पहले अध्याय का दार्शनिक महत्व है, उसमें वेदों को प्रमाणित माना गया है। जैमिनी सूत्र में देवताओं की भी चर्चा की गई है, इसे देवता कांड या संघर्ष कांड के नाम से जाना जाता है। जैमिनी सूत्र पर शंकर स्वामी का एक बहुत बड़ा भाष्य है, इसे शंकरभाष्य के नाम से जाना जाता है। इसका काल ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग माना जाता है। शंकर स्वामी से पूर्व जैमिनी सूत्र में भतृ मित्र, भवदास, हरि, उपवर्ष आदि महान भाष्यकार हुए, परन्तु उनके कोई ग्रन्थ नहीं प्राप्त हुए, अतः इनकी चर्चा मीमांसा दर्शन में नहीं की जाती है। मीमांसा दर्शन में दो भाष्यकारों का नाम उल्लेखनीय है-

१. कुमारिल भट्ट, २. प्रभाकर।

कुमारिल भट्ट सनातन ब्राह्मण धर्म के व्याख्याता माने जाते थे, उन्हें पुरोहितवाद की भी संज्ञा दी गयी। कुमारिल भट्ट के ग्रन्थ के तीन भाग हैं-

१. श्लोक कवार्त्तिक, २. तत्र वार्तिक, ३. टुपटीका।

मंडन मिश्र को कुमारिल भट्ट का शिष्य कहा जाता है। मंडन मिश्र की दो रचनाएँ हैं-

१. विधिविवेक, २. मीमांसानुक्रमणी।

प्रभाकर ने शंकरस्वामी के भाष्य पर अपनी एक टीका लिखी है, जिसे बृहत के नाम से माना जाता है। कुछ विद्वान इन्हें कुमारिल भट्ट से भी पूर्व का मानते हैं। प्रभाकर की टीका 'बृहत' पर टीका शालिकनाथ द्वारा लिखी गई, इसे 'त्रजु विमला' कहते हैं। सत्ररहवीं शताब्दी में आकर खंडदेव ने 'भाट्टदीपिका' नामक ग्रन्थ लिखा है। यह ग्रन्थ अपनी तर्क शैली के लिए प्रसिद्ध है। उनके द्वारा लिखित ग्रन्थ 'मीमांसा कौस्तुम' मीमांसा सूत्रों के विषय पर प्रकाश डालता है।

पूर्व मीमांसा

मीमांसा दर्शन को कभी-कभी पूर्व मीमांसा के नाम से जाना जाता है। इसे पूर्व मीमांसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि वेदान्त अथवा उत्तर मीमांसा के पूर्व इसका स्थान पाया जाता है। अन्य शब्दों में, पूर्व मीमांसा कहलाने का कारण ऐतिहासिक न होकर तार्किक क्षमता से पूर्ण है। पूर्व मीमांसा का सम्बन्ध तर्क से हैं इसका सम्बन्ध कर्मकांड से है तथा उत्तरी मीमांसा का झुकाव ज्ञानकांड की ओर रहता है तथा पदार्थों के सत्य ज्ञान को प्राप्त करना इसका उद्देश्य है। उपनिषदों के अतिरिक्त प्रायः सभी वेदों में धर्म- कर्म, और कर्त्तव्य कर्म की बात की गई है तथा उन कर्मों में 'यज्ञ' का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। शंकराचार्य के अनुसार, अच्छे कर्म से अच्छा फल मिलता है व बुरे कर्म से बुरा फल। अच्छे कर्मों से सत्य ज्ञान अथवा विवेक ज्ञान की प्राप्ति होती है। पूर्व मीमांसा का उद्देश्य धर्म के स्वरूपं की परीक्षा करना है तथा इसमें कल्पना, रुचि या निराधार चिन्तर के लिए कोई स्थान नहीं है। पूर्व मीमांसा में दार्शनिक चिन्तन पाया जाता है। इसमें धर्म के प्रति सत्यनिष्ठा का उदय होता है तथा आत्मा की यथार्थता पर विश्वास किया जाता है, वेदों पर विश्वास किया जाता है तथा इन्हें पूर्ण सत्य माना जाता है। वेदों के रचयिता ब्रह्म को माना जाता है। मीमांसा दर्शन अन्य दार्शनिक विचारों का आदर करता है। वह उनका तब तक खंडन नहीं करता जब तक वह उनके मुख्य कर्मकांड का विरोध नहीं करता है। मीमांसा दर्शन में प्रमा, प्रमाण और प्रमेय की व्याख्या की जाती है तथा इसका उद्देश्य वेदों की प्रमाणिकता को सिद्ध करना है। प्रभाकर ने अनुभूति को प्रमाण माना है। मीमांसा बाह्य जगत् और जीवात्माओं का अस्तित्व मानती है परन्तु ईश्वर का अस्तित्व नहीं मानती। प्रभाकर ने आठ पदार्थ माने हैं-

१. द्रव्य २. गुण, ३. कर्म, ४. सामान्य, ५. परतन्त्रता, ६. शक्ति, ७. सादृश्य, ८. संख्या।

प्रभाकर द्रव्य, गुण और कर्म को सामान्य मानते हैं। प्रभाकर परतन्त्रता को समवाय मानते हैं तथा समवाय को एक ओर नित्य मानते हैं। शक्ति अप्रत्यक्ष होती है व कार्य उत्पन्न करती है। द्रव्य, गुण और कर्म सामान्य कारण होते हैं लेकिन इनमें शक्ति निहित होती है जिसकी सहायता से कार्य उत्पन्न होता है।

शक्ति का अनुमान कार्य से होता है। प्रभाकर ने सादृश्य को एक स्वतन्त्र पदार्थ माना। संख्या द्रव्य नहीं है क्योंकि वह गुणों में रहती है। कुमारिल ने पदार्थों का और अभाव का विभाजन किया है। भाव पदार्थ चार हैं-

१. द्रव्य, २. गुण, ३. कर्म, ४. सामान्य।

अभाव पदार्थ भी चार हैं-

१. प्रागभाव, २. प्रध्वंसभाव, ३. अत्यन्ताभाव, ४. अन्योन्याभाव।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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